श्री सरस्वती पुस्तकालय का संक्षिप्त इतिहास
राजस्थान के शेखावटी अंचल के सीकर जिले के फतेहपुर कस्बे के मुख्य बाजार में स्थित श्री सरस्वती
पुस्तकालय एक ऐसा संस्थान हैं जिसके बारे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऐसे छोटे कस्बे में एक ऐसा संस्थान है। जिसमें देश विदेश के साहित्य, संस्कृति, धर्म, राजनीति, इतिहास, संस्कृत, हिन्दी, दर्शन, अंग्रेजी,अध्यात्म, वेदांग, पुरातत्व आदि की जानकारी देने वाले अलम्य दुर्लभ ग्रंथों का संकलन किया गया है। पुराने समय के फतेहपुर कस्बे के मुख्य बाजार में पूर्णमल सिंघानिया की दुकान पर बने चौबारे में इस संस्थान की श्री वासुदेव गोयनका तथा श्री बजरंग लाल लोहिया के अथक प्रयासों से और पंडित वृद्धिचंद वैध निवासी लक्ष्मणगढ़ (सीकर) के सभापतित्व में14मई1910 को इस सरस्वती के मंदिर की स्थापना मात्र100 पुस्तकों के साथ की गई थी।सन्1911मेंश्री रामनरेश त्रिपाठी को पुस्तकालय का प्रथम व्यवस्थापक व पुस्तकाध्यक्ष बनाया गया। उन्होने सन् 1915 तक अपने दायित्व का निर्वाह करते हुये 5200 पुस्तकों का अध्ययन करके अपनी लालसा व ज्ञान पिपासा की परितृप्ति इसी पुस्तकालय में पूरी की और हिन्दी साहित्य गगन के उदीयमान लेखक व कवि बन गये। उन्होंने हे प्रभोआनंददाता जैसी कालजयी प्रार्थना की रचना इसी फतेहपुर में रहते हुये की थी।अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा के कारण वे पूरे देश में प्रसिद्ध हुये। यह श्री सरस्वती पुस्तकालय की ही देन थी।सन् 1935 में नागरमल गोयनका की माताजी श्रीमती गौरी देवी की स्मृति में निर्मित व प्रदत अपने नये भव्य भवन में श्री सरस्वती पुस्तकालय अवस्थित हो गया। आज भी इस संस्था में 16,17,18,19,20 वी शताब्दीयों में विभिन्न भाषाओं और विषयों में प्रकाशित अथवा हस्तलिखित, अप्राप्य, दुर्लभ पांडुलिपियां एवं सामग्री उपलब्ध है जिसमें पुस्तकालय में 500हस्तलिखित कृतियाँ भी उपलब्ध है। यहाँ साहित्य का अलौकिक भंडार है। जिसमें संस्कृत में 255 पृष्ठीय स्वर्ण अक्षरों व चित्र सहित भगवद् गीता जिसमें कृष्ण अर्जुन संवाद पोस्ट कार्ड साईज पृष्ठो मे लिखित उपलब्ध है और ऋग्वेद संहिता के 40 भाग डा. क्रेडिक मैक्समूलर द्वारा लिखित (1845) अथर्ववेद संहिता रिचर्ड गार्वे द्वारा लिखित (1901) मानवकल्प सूत्र:यूनिवर्सिटी कालेज लंदन (1860) जिसके मूल लेखक कुमारेल मास्थम है। अन्य सामग्री में कपालिक संत कालबेलिया चित्र संकलन, भोजपत्र, हस्तलिखित चित्रों का संकलन है जिसमें विभिन्न संप्रदाय के 172साधु संतों के विभिन्न मुद्राओं के चित्र उपलब्ध है और कल्प सिध्दांत, बाल बौधाय व्याख्यान पध्दति (प्रथम से नवम तक) कल्याण स्त्रोत परिशिष्ट पर्व निष्व विरावली चरितम् और सन् 1801में लिखित चायना दंड विधान(पनिश्मेंट ऑफ चायना) इसमें जिस तरह की सजा दी जाती है उसी केअनुरूप उसकी पालना के22दुर्लभ चित्र उपलब्ध है पुस्तकालय में पाउल रुस द्वारा1801में लिखित चायना में प्रकाशित "ए स्टोरी ऑफ बुध्दिस्थ फिलासफी भी है जिसमें बौद्ध दर्शन का अंग्रेजी में सचित्र वर्णन किया गया है। इसकी प्रिंट सिल्क के कपड़े पर की गई है जो आज भी ज्यों की त्यो उसी अवस्था में यहाँ पर मौजूद है। सन् 1908 में लिखित लेंग्वेस्टिक सर्वेऑफ इंडिया भी यहाँ पर उपलब्ध है जर्मन विद्वान क्रेडिक मैक्समूलर द्वारा सन् 1845 में लिखित ऋग्वेद भाष्य जो जर्मनी से मंगवाया गया था उसके सभी 40 भाग के साथ 17 फरवरी 1875 में वहाँ के पुस्तकालयाध्यक्ष रेयान होल्डराॅस द्वारा लिखित अर्द्धशासकीय पत्र आज भी पुस्तकालय में उपलब्ध है। यहाँ का सबसे बड़ा खजाना यहाँ उपलब्ध बांगला और संस्कृत भाषा में लिखें 200 के लगभग ताड़पत्र है। जो पुस्तक के रूप में बंगाल से यहाँ पुस्तकालय में मंगवाए गये थे। यहाँ तांत्रिक ग्रंथ(उड़ीसा) देव कापालिका हीनयान कापालिका संप्रदाय विक्रम संवत् 1456 यानि सन् 1399 में जो उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में लिखें हुये हैं। यहाँ भारत का सर समुच्चय काव्य भी है पुस्तकालय में राजस्थान की सभी रियासतों के राजा महाराजाओं के दुर्लभ चित्रों का संकलन भी उपलब्ध है यहाँ पुराने समय के दुर्लभ समाचार पत्रों का अपूर्व भंडार है जिनके नामआज की पीढ़ी ने तो सुने भी नहीं होगें। आज से 80से100साल पुराने समाचार पत्रों में, अभ्युदय भारत,अवधवासी, अर्जुन देहली, कर्मवीर खंडवा,प्रजासेवक, प्रजाबंधु, प्रताप कानपुर, भारत मित्र,विश्वामित्र कलकत्ता, वेंकटेश्वर समाचार पत्र,लोकमान्य,वीरअर्जुन, हरिजन, हरिजन सेवक,
यंग इंडिया, दैनिक हिन्दुस्तान, राष्ट्रदूत,राजस्थान पत्रिका दैनिक आसपास आदि का व अंग्रेजी समाचार पत्रों का संकलन भी काफी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है साहित्यिक पत्रिकाओं का भी यहाँअनूठा संकलन मौजूद है जो इस प्रकार से है हंस, सरस्वती माधुरी, चांद, होनहार, कादम्बिनी, नवनीत,सर्वोदय, सुधा, ज्ञानोदय, विशाल भारत,नवजीवन राष्ट्रधर्म, नीहारिका, सुधानिधि व अन्य प्रकार की पत्रिकाओं का संग्रह निम्न प्रकार से है;-कल्याण, उधम, अणिमा, अणुव्रतआजकल, आरोग्य, उधोग व्यापार, जीवन साहित्य, धन्वतरि, बालसखा, बाल भारती, बेकार सखा ,योजना, विज्ञान, दिनमान, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कारवां, लिंक, शंकर वीकली, सरिता, मुक्ता, लेखाविज्ञ, शिविरा, ब्लिट्ज व पांचजन्य नोंकझोक, तरंग, मस्ताना जोगी, कर्मयोगी का भी काफी अच्छा संग्रह है और राजस्थान राजपत्र व जयपुर राजपत्र व भारत के संविधान की प्रति भी यहाँ मौजूद है। इस संस्था की दुर्लभ पुस्तकों को सरस्वती मंजूषा नाम से सात खंडो में विषयवार वर्गीकृत किया गया है जो इस संस्था की गरिमा को उजागर करती है वर्तमान में इस संस्था में 40,000 पुस्तकें मौजूद है17,18,19,20 जुलाई 1978 की निरंतर भयंकर बारिश व बाढ़ से पुस्तकालय के पुराने भवन में दरार आ गई। पुस्तकालय का पश्चिमी हिस्सा जमीन में बैठ गया। नीचे से ऊपर तक छत के आर पार भवन दो त्रिकोणाकार खंडो मे विभाजित हो गया। ऐसी विषम परिस्थिति को देखते हुये संस्था के पदाधिकारियों ने काफी मंथन करने के बाद इस क्षतिग्रस्त भवन को गिराकर नूतन भवन बनाने का निर्णय लिया। जिसके प्रयास तत्काल ही शुरू कर दिये गये। तत्कालीन मंत्री श्री बनवारी लाल भिण्डा व अध्यक्ष श्री रामगोपाल वर्मा के अथक प्रयासों से सन् 1981में नूतन भवन का निर्माण कार्य शुरू हो गया और सन् 1985 में यह कार्य पूरा हुआऔर श्री सरस्वती पुस्तकालय के नूतन भवन का 17 सितम्बर 1985 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी द्वारा उद्घाटन किया गया। श्री बजरंग लाल लोहिया को अप्राप्य ग्रंथों के संग्रहण की बदौलत ग्रंथ ऋषि की उपाधि दी गई। श्री सरस्वती पुस्तकालय के द्वारा अनेक दुर्लभ ग्रंथों का पुर्प्रकाशन कर आमजन तक पहुँचाने का कार्य मंत्रीश्री बनवारी लाल भिंडा व अध्यक्ष श्री राम गोपाल वर्मा द्वारा किया गया। पुस्तकालय अपने अनमाेल खजाने की वजह से देशभर के प्रतिष्ठित मनस्वियो को अपनी और आकर्षित कर चुका है जिनमें प्रमुख महानुभाव निम्न हैं:-
1०" फतेहपुर के श्री सरस्वती पुस्तकालय को
देखने का सुअवसर मिला। यहाँ बहुत ही अच्छा संग्रह
है आधुनिक ढंग की पुस्तको के अलावा पुरानी पुस्तकें
कुछ हस्तलिखित प्रतियां भी है पुराने समाचार पत्रों
व पुरानी प्रतियो का संग्रह भी सुंदर है इस तरह यह
एक उपयोगी पुस्तकालय है इसकी दिनोदिन उन्नति
हो यही मेरी प्रार्थना मनोकामना है।
(डा० राजेन्द्र प्रसाद परवर्ती काल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनें 7-9-1945)
2० "आज थोड़ी के लिए श्री सरस्वती पुस्तकालय को
देखने का अवसर मिला। यह संस्था अच्छा काम कर
रही है। हम लोग इसकी सफलता चाहते हैं।
(श्री हीरालाल शास्त्री परवर्ती काल में राजस्थान के मुख्यमंत्री सन् 6-10-1941 )
3०" ऐसे पुस्तकालय मैंने बहुत कम जगहो पर देखें है यहाँ बैठकर मेरी भी पढने की इच्छा हुई "
(डा०राममनोहर लोहिया समाजवादी नेता 11-3-1949 )
4०" यहाँ के पुस्तकालय का संग्रह बहुत सुंदर है कुछ
अंशों में यह बेजोड़ कहा जा सकता है यहाँ अनेक
अप्राप्य वस्तुएं नजर आई। कलाकृतियों व चित्र संग्रह
के नमूने देखे"
(श्री जयनारायण व्यास परवर्ती काल में लोकनायक व राजस्थान के मुख्यमंत्री 23-3-1941 )
5०" श्री सरस्वती पुस्तकालय में पुस्तकों का संग्रह
बहुत ही अच्छा है।
( श्री जमनालाल बजाज 5-10-1928)
6०" पुस्तकालय की वर्तमान दशा देखकर मुझे अतीव
हर्ष हुआ है यह तो फतेहपुर में ज्ञान का कल्पवृक्ष खड़ा हो गया है पुस्तकालय प्रबंध भी प्रशंसा योग्य है।
(पं०रामनरेश त्रिपाठी हिंदी साहित्यकार 3-9-1944)
7०" श्री सरस्वती पुस्तकालय को देखा। यह इस प्रांत
में ही नहीं राजपूताना में अपने ढंग का एक ही
पुस्तकालय है जिसमें कितनी ही तो ऐसी पुस्तकें हैं
जो अन्यत्र दुर्लभ है। "
( इतिहासकार पं झाबरमल शर्मा 26-11-1934)
8०" पुस्तकों का संग्रह सराहनीय कदम है। पुस्तकालय में यह देखकर अधिक प्रसन्नता हुई कि
अति प्राचीन हिन्दी पत्रों की पुरानी फाइलें बहुत
सुरक्षित जाती है। "
(श्री सत्यदेव विधालंकार सुप्रसिद्ध इतिहास मर्मज्ञ
23-11-1942)
9० I find such a wide stocked library in
the town.
(सर मिर्जा एम इस्माइल जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री
4-3-1943)
10० It is nearing completion and is a veryfine Institutions. I am always trying
coming here and borrowing among the
history books.
(Captain,A. W. I .WEEB SENIOR OFFICER SIKAR,BRITISH INDIA 18-12-1936)
11०" मुझे यह देखकर अमित हर्ष हुआ कि शिक्षा की
दृष्टि से पिछड़े हुए शेखावटी जैसे प्रांत मे भी एक ऐसा
संपन्न पुस्तकालय है जिसमें वेद- वेदांग पुरातत्व, धर्म
तथा दर्शन शास्त्र आदि से संबंध रखने वाले बहुमूल्य
साहित्य का संग्रह है। बहुत से दुष्प्राप्य एवं अप्राप्य
ग्रंथों तथा बहुमूल्य सूची पत्रों का संग्रह इस पुस्तकालय की प्रमुख विशेषता है। "
(डा०कन्हैयालाल सहल, राजस्थानी भाषा व लोक
संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान, 29-6-1943)
12०" अत्र सरस्वती पुस्तकालये सदग्रंथानाम सुसंग्रहे
महते श्रेयसे"
(श्री करपात्री जी महाराज 10-12-1956)