श्री सरस्वती पुस्तकालय का संक्षिप्त इतिहास
राजस्थान के शेखावाटी के सीकर जिले के फतेहपुर कस्बे के बीचों बीच श्री सरस्वती पुस्तकालय ऐसा संस्थान है। जिसके बारे में कोई कल्पना भी न ही कर सकता की ऐसी छोटी सी जगह पर देश विदेश की संस्कृति, साहित्य, धर्म, राजनीतिक , दर्शन, विज्ञान की जानकारी देने वाले दुर्लभ, अलम्य ग्रंथो का संकलन किया गया है। कस्बे के बाजार में पूर्णमल सिंघानिया की दुकान पर बने चौबारे में श्री वासुदेव गोयनका तथा बजरंगलाल लोहिया के अथक प्रयासों से 14 मई1910 को इस सरस्वती के मंदिर की स्थापना मात्र 100 पुस्तकों के साथ की गई। सन् 1911 में मूर्घन्य साहित्यकार पं. रामनरेश त्रिपाठी को इसका व्यवस्थापक बनाया गया। उन्होंने सन् 1915 तक दायित्व निर्वाह करते हुये 5000 पुस्तको का अध्ययन किया। बाद में वे है प्रभोआनंददाता जैसी प्रार्थना व अपनी रचना धर्मिता के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध हुये। वे इसी सरस्वती पुस्तकालय की देन थे। आज भी इस संस्था अप्राप्य दुर्लभ पांडुलिपियां, हस्तलिखित सामग्री उपलब्ध है श्री सरस्वती पुस्तकालय स्थानीय प्रबंध समिति द्वारा संचालित है। यहाँ साहित्य का अद्भूद भंडार है। पुस्तकालय में आज भी 5000 हस्तलिखित कृतियाँ उपलब्ध है। जिसमें संस्कृत में 255 पृष्ठीय स्वर्ण अक्षरों व चित्रो सहित भगवद् गीता जिसमें कृष्ण-अर्जुन संवाद पोस्टकार्ड साईज पृष्ठों पर लिखित है।
ऋग्वेद संहिता के 40 वोल्यूम डा. मेक्समूलर(1845) अथर्ववेद संहिता - रिचर्डगार्वे (1901), मानवकल्प सूत्रः यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन (1860) जिसके मूल लेखक कुमारेल मास्थम है। कपालिक संत कालबेलिया फोटो एलबम, भोजपत्र, हस्तलिखित चित्रो का एलबम है। जिसमें सभी संप्रदाय के साधु संतो के 172 दुर्लभ चित्र है और कल्पसिंद्धांत, बालबौधाय व्याख्यान पद्धति (प्रथम से नवम्) कल्याण स्त्रोत, परिशिष्ट पर्वनिष्व विरावली चरितम् सन् 1801 में लिखित याचना दण्ड विधान (पनिस्मेंट आॅफ चायना) है इसमें जिस तरह की सजा दी जाती है उसी अनुरूप उसकी पालना के 22 दुर्लभ चित्र उपलब्ध है। पुस्तकालय में पाउलरूस द्वारा 1801 में लिखित चायना में प्रकाशित ‘ए’ स्टोरी आॅफ बुद्धिस्थ फिलोसॅफी भी है। जिसमें बौद्ध दर्शन का अंग्रेजी में सचित्र वर्णन किया गया है इसकी प्रिंट सिल्क के कपडे की गई है जो आज भी ज्यो की त्यों है। सन् 1908 में लिखित लेंगविस्टक सर्वे आॅफ इंडिया भी यहां उपलब्ध है। मेक्समूलर द्वारा 1845 में लिखित ऋग्वेद के सभी 40 वोल्यूम के साथ 17 फरवरी 1875 को वहाँ के लाईब्रेरियन रेयाॅन होल्डरोस द्वारा लिखित अर्द्ध शासकीय पत्र आज भी पुस्तकालय में उपलब्ध है। यहां के सबसे बड़ा खजाना यहां उपलब्ध बांगला और संस्कृत भाषा में लिखें 200 के लगभग ताडपत्र है जो पुस्तकीय रूप में बंगाल से मंगवाए गये थे। यहाँ तांत्रिक ग्रंथ (उडीसा) देव कापालिका हिनियान कपालिक संप्रदाय वि.स 1456 यानि सन् 1399 जो उड़ीसा राजधानी भुवनेश्वर में लिखे हुये है यहाँ भारत का सरसमुच्चय काव्य भी है यहाँ दुर्लभ समाचार पत्रों का अपूर्व भंडार है। जिनके नाम आज की पीढ़ी ने सुने भी नहीं होगे। आज से 80-100 साल पुराने समाचार पत्रों में अभ्युदय भारत 1912, अवधवासी 1917, अयोध्या कर्मवीर खंडवा 1922, नवजीवन 1922, अखंडभारत, अमरभारत, नवभारत, आज, काशी, राज स्थान पत्रिका के 1975 से आज तक के अंक मौजूद है। इस संस्था की दुर्लभ पुस्तकों को सरस्वती मंजूषा नाम के सात खंडो में विषयवार वर्गीकृत किया गया है जो इसकी गरिमा को उजागर करती है। वर्तमान में यहाँ 37,260 पुस्तके है।
यहा राजस्थान के राजा महाराजा के चित्रो को भी संभालकर रखा गया है। जुलाई 1978 को आई भंयकर बारिश के कारण पुराना भवन क्षतिग्रस्त हो गया। सन् 1981 से नये भवन का निर्माण शुरू हुआ और 1985 में यह कार्य पूरा हुआ इसका उद्घाटन राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने किया। श्री बजरंग लाल लोहिया को अप्राप्य ग्रंथो के संग्रहण की बदोलत ग्रंथ ऋषि की उपाधि से नवाजा गया था। सरस्वती पुस्तकालय द्वारा अनेक दुर्लभ ग्रंथो को आमजन तक पंहुचाने के लिए इनका पुनर्प्रकाशन मंत्री बनवारी लाल भिण्डा, अध्यक्ष स्व-रामगोलाल वर्मा द्वारा करवाया गया। श्री सरस्वती पुस्तकालय में हजारो शोधार्थी अपना शोधकार्य पूरा कर चुके है। पुस्तकालय अपने अनमोल खजाने की वजह से देष के अनेक प्रतिष्ठित लोगो को आकर्षित कर चुका है जिनमे ंप्रमुख है।
(1) “फतेहपुर के श्री सरस्वती पुस्तकालय को देखने का सुअवसर मिला। यहाँ बहुत ही अच्छा संग्रह है आधुनिक ढंग की पुस्तकों के अलावा पुरानी पुस्तकें कुछ हस्तलिखित प्रतियां भी है। पुराने समाचार पत्रों व पुरानी प्रतियो का संग्रह भी सुंदर है इस तरह यह एक उपयोगी पुस्तकालय है इसकी दिनोदिन उन्नति हो यही मेरी प्रार्थना और मनोकामना है“
07/09/1945 (डा. राजेन्द्र प्रसाद: पूर्व राष्ट्रपति)
(2) “इस पुस्तकालय को देखकर मेरा चित अत्यन्त प्रसन्न हुआ“।
30/10/194 8(श्री हीरालाल शास्त्री: पू. मु.मंत्री राजस्थान)
(3) “यहां के पुस्तकालय का संग्रह बहुत संुदर है कुछ अंशो में यह बेजोड़ कहा जा सकता है। यहाँ अनेक अप्राप्य वस्तुएँ नजर आई। कला कृतियों व चित्र संग्रह के नमूने भी देखें“
(श्री जयनारायण व्यास: पूर्व मुख्यमंत्री राजस्थान)
(4) “ऐसे पुस्तकालय मैने बहुत देखें है। यहाँ बैठकर मेरी भी पढ़ने की इच्छा हुई।
11/03/1949 (डां. राममनोहर लोहिया)
(5) “पुस्तकालय की वर्तमान दशा देखकर मुझे अतीव हर्ष हुआ है यह तो फतेहपुर में ज्ञान का एक कल्पपृक्ष खड़ा हो गया है पुस्तकालय प्रबंध भी प्रशंसा योग्य है।”
03/09/1944(पं. रामनरेश त्रिपाठी: प्रख्यात हिन्दी साहित्यकार)